अब आया योग कैप्सूल का जमाना

अब आया योग कैप्सूल का जमाना

भारतीय सेना के अधिकारी योग करते हुए। फोटो साभार: टि्वटर

जी हां, यह योग कैप्सूल का जमाना है। सिद्ध योगियों ने तो दो-तीन दशक पहले ही भांप लिया था कि योग का विस्तार कितने व्यापक फलक पर होना है और भाग-दौड़ की जिंदगी जी रहे लोगों को स्वस्थ रखने के लिए किस तरह के योगभ्यासों की जरूरत होगी। लिहाजा उन्होंने उसके अनुरूप योग कैप्सूल (योगाभ्यासों की विधियां) विकसित कर दिए थे। अब इस ओर सरकार का भी ध्यान गया है। विभिन्न वैज्ञानिक अध्ययनों के निष्कर्षों के आधार पर अगल-अलग आयु वर्ग की महिलाओं और बच्चों के लिए ऐसे योग कैप्सूल तैयार किए जा रहे हैं, जिनसे उनका जीवन स्वस्थ और आनंदमय रहे। ये योग कैप्सूल केंद्र सरकार के फिट इंडिया अभियान का हिस्सा होंगे।   

योग को जीवन-पद्धति बनाने के दिशा में अग्रसर लोगों के लिए यह सुखद है कि योग की चिंता संसद में की गई और भारत सरकार ने खासतौर से स्कूली बच्चों को योग शिक्षा देने की दिशा में कदम बढ़ाया है। स्कूली छात्रों की आवश्यकताओं औऱ उनके रूटीन को ध्यान में रखते हुए योग कैप्सूल तैयार किए जा रहे हैं। इस बात को ध्यान में रखा जा रहा है कि योग कैप्सूल के तहत ऐसे ही योगभ्यास शामिल किए जाएँ, जो शरीर की महत्वपूर्ण ग्रंथियों को स्वस्थ रखने में विज्ञान की कसौटी पर कारगर साबित हो चुके हैं।

इस बीच केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय के अधीन स्वायत्त संस्थान मोरारजी देसाई राष्ट्रीय योग संस्थान ने 3-6 वर्ष के बच्चों के लिए, नवयुवतियों के लिए, गर्भवती महिलाओँ के लिए, स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए औऱ चालीस वर्ष से ऊपर की महिलाओं के लिए योग संबंधी कुछ प्रोटोकॉल तैयार किया है। योगासन और फिटनेस स्वयंसेवकों की पहचान करके उन्हें प्रशिक्षित किया जा रहा है। इस काम में योग प्रमाणन बोर्ड की भी बड़ी भूमिका है। उसे योग शिक्षकों की गुणवत्ता सुनिश्चित करनी है। सूचना, शिक्षा और संचार (आईईसी) के तहत लोगों को योग के मामले में सरकार की ओर से किए जा रहे कार्यों की जानकारी देने के लिए कई काम किए जाने हैं।

बीते सप्ताह इसी कॉलम में बच्चों के लिए योग की अनिवार्यता पर विस्तार से चर्चा की गई थी। उसमें वैज्ञानिक शोधोंं के आधार पर बताया गया था कि बच्चों की पीनियल ग्रंथि को स्वस्थ रखना कितना जरूरी होता है। अच्छा है कि संसद के शीतकालीन सत्र में तमाम राजनीतिक मुद्दों को लेकर गहमा-गहमी के बीच योग चर्चा का विषय बना। संसद सदस्यों ने महिलाओं और स्कूली बच्चों के जीवन को आनंदमय बनाने के लिए योग की महत्ता समझी। पूरे देश में इस दिशा में कारगर काम हो, इसके लिए चिंता की। चार सांसदों श्रीमती संध्या राय, विजय कुमार दूबे, रेवती त्रिपुरा औऱ मोहनभाई कुंडारिया ने देश में योग को बढ़ावा देने के बाबत सवाल किया। उसी के जबाव में केंद्रीय आयुष मंत्री श्रीपाद येसो नाईक ने सरकार की ओऱ से किए जा रहे कार्यों पर विस्तार से प्रकाश डाला।

श्री नाईक ने जब योग कैप्सूल की बात की तो मुझे पद्मभूषण परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती की याद आई। वह विश्व प्रसिद्ध बिहार योग विद्यालय के संस्थापक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी हैं। कोई एक लाख सदस्यों वाले बाल योग मित्र मंडल के संस्थापक भी हैं। उन्होंने दो दशक पहले कल्पना की थी कि भविष्य में किस तरह के योगाभ्यासों की जरूरत होगी। लिहाजा उन्होंने उसी के अनुरूप योगाभ्यासों का कैप्सूल तैयार कर दिया था।

सिद्ध योगी त्रिकालदर्शी होते हैं। सुना था, अब देख भी रहा हूं। आधुनिक यौगिक व तांत्रिक पुनर्जागरण के प्रेरणास्रोत स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने 1996 में देवघर जिले के रिखिया स्थित अपने आश्रम में आयोजित सत्संग में कहा था – आज दुनिया में एक वैश्य समाज हो गया है। यह जिस तरह व्यापार के बारे में निर्णय लेता है, उसी तरह योग के बारे में निर्णय लेगा। उसे योग का वैज्ञानिक पक्ष समझ में आ गया है। आने वाले समय में योग को शिक्षा में अनिवार्य बनाया जाएगा। उनकी यह भविष्यवाणी 1996 में ही प्रकाशित भक्ति योग सागर के भाग – 4 में प्रकाशित है।

योग भविष्य की संस्कृति है, वे यह बात तो साठ के दशक से ही कहते रहे। महाराष्ट्र के लोनावाला स्थित कैवल्यधाम योग संस्थान के संस्थापक स्वामी कुवल्यानंद ने तो बीस के दशक में ही परंपरागत योग को विज्ञान की कसौटी पर कसना शुरू कर दिया था। परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने व्यापक फलक पर इस काम को अंजाम दिया। उन्होंने इन बातों के साथ ही कहा था कि स्वामी निरंजन का व्यक्तित्व नए युग के अनुरूप है और वह आज की पीढ़ी के अनुरूप सोच सकते हैं। योग के विकास में उनकी बड़ी भूमिका होगी। परमहंस स्वामी सत्यानंद जी की यह भविष्यवाणी भी सही साबित हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी साल योग के संवर्धन और विकास में उल्‍लेखनीय योगदान के लिए उन्हें सम्मानित किया।

सचमुच, युवापीढ़ी की आधुनिक जीवन-पद्धति को ध्यान में रखकर तैयार किया हुआ स्वामी निरंजनानंद सरस्वती का योग कैप्सूल (योगाभ्यासों की विधियां) बड़े काम का है। दुनिया के विभिन्न भागों में बड़ी संख्या में लोग इन योगाभ्यासों को अपने जीवन का हिस्सा बना रहे हैं। यौगिक कैप्सूल में रोज के लिए मुख्यतपांच आसन, दो प्राणायाम और शिथिलीकरण का एक लघु अभ्यास सम्मिलित किए गए हैं। परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने स्वस्थ युवा बढ़ती उम्र के साथ भी स्वस्थ रहें, इस बात को ध्यान में रखकर योग कैप्सूल बनाया था। बाद में हर आयु वर्ग के स्वस्थ लोगों के लिए योग साधना बताए। उन्होंने बच्चों के लिए तो विशेष तौर कर काम किया हुआ है। योग पर किए गए ये काम केंद्र सरकार को विभिन्न आयु वर्ग को लोगों के लिए योग कैप्सूल बनाने में मददगार साबित होंगे।

स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने युवाओं के लिए तैयार किए गए अपने योग कैसूल की व्याख्या कुछ इस तरह की है - अपने नित्यकर्मों से निवृत्त होकर नाश्ते से पहले आसन और प्राणायाम का अभ्यास किया जाना चाहिए। एक सामान्य व स्वस्थ व्यक्ति के लिए कुछ ही आसन पर्याप्त है। पहला है ताड़ासन। ताड़ासन के अभ्यास से अस्थियों और मेरूदंड में जमा तनाव और दबाव मुक्त हो जाता है। यह खिंचाव का अभ्यास है, जिससे विभिन्न प्रकार के जोड़ों से दबाव दूर होता है।

दूसरा आसन तिर्यक् ताड़ासन है। यह एक सरल पर बेहद लाभदायक अभ्यास है। इसमें पीठ की एक तरफ तो खिंचाव होता है और दूसरी ओर दबाव पड़ता है, जिससे दोनों तरफ का तनाव मुक्त हो जाता है। यह अभ्यास मेरूदंड की गड़बड़ियों को ठीक करने और उसे सीधा करने के लिए उत्तम है। तीसरा आसन है कटि-चक्रासन, जिसमें हम अपने मेरूदंड को मोड़कर शरीर के विभिन्न आंतरिक अंगों को निचोड़ते हैं। इससे शरीर के प्रत्येक अंग, पेशी और जोड़ में सुचारू रूप से रक्त का संचार होता है। चौथा अभ्यास है सूर्य नमस्कार, जिसमें मुख्यत: आगे और पीछे झुकने वाले आसन हैं। इन चार अभ्यासों द्वारा हम शरीर को पांच तरह की अवस्थाओं में लाते हैं – सीधा तानना, पार्श्व की ओर झुकना, मोड़ना, आगे झुकना और पीछे झुकना।

इन सब अभ्यासों के बाद केवल एक ही आसन करने की जरूरत रहती है – शरीर को उल्टा करने वाला आसन। यह शरीर पर गुरूत्वाकर्षण के प्रभाव को विपरीत करने के लिए किया जाता है। लेकिन इस समूह के आसन थोड़े कठिन होते हैं। इसलिए इन्हें किसी योग्य प्रशिक्षक के मार्ग-दर्शन में ही सीखना चाहिए। पांच आसनों के अभ्यास के बाद प्रतिदिन दो प्राणायाम जरूरी हैं। पहला है नाड़ी शोधन प्राणायाम, जिसमें दोनों नासिकाओं से बारी-बारी से श्वास लिया और छोड़ा जाता है। यह तंत्रिका प्रणाली की गतिविधियों को संतुलित करने के लिए बहुत प्रभावशाली अभ्यास है, क्योंकि इसके द्वारा अनुकंपी और परानुकंपी तंत्रिका तंत्र में संतुलन आता है और प्राणिक अवरोध दूर होते हैं।

दूसरा अभ्यास है भ्रामरी प्राणायाम, जिसमें कंठ से भौरे जैसा गुंजन पैदा किया जाता है। भ्रामरी प्राणायाम के अभ्यास से मस्तिष्क में एक प्रकार की तरंग उत्पन्न होती है, जिससे मस्तिष्क, स्नायविक तंत्र और अंत:स्रावी तंत्र के विक्षेप दूर होते हैं और व्यक्ति शांति व संतोष का अनुभव करता है। स्वामी निरंजनानंद जी कहते हैं कि यही हमारे दैनिक जीवन का योग कैप्सूल होना चाहिए।  

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)

 

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